तिलोद्भ्वम तैलम

तेल शब्द की उत्पत्ति तिल से हुई है इसलिए तेलों में तिल के तेल को मुख्य माना गया है. सभी तेल अपने अपने उत्पत्ति कारकों के समान गुणधर्मो वाले होते हैं. तिल का तेल तीक्ष्ण, व्यवाई अर्थात शीघ्र फैलने वाला, त्वग्दोषनाशक, नेत्रों के लिए हानिकारक, सूक्ष्म तथा उष्ण होता है....

आयुर्वेद में मधु अथवा शहद के गुण

मधु अथवा शहद नेत्र रोगों के लिए उत्तम माना गया है. शहद लेखन है अर्थात साफ़-सफाई का कार्य करता है खुरच कर. इसलिए ये कफ को बाहर निकालने में मदद करता है. ये गले के लिए भी उत्तम माना गया है. जिन लोगों को अधिक बोलने की आवश्यकता होती है उनके लिए हितकर है. ये स्वर को मधुर...

आयुर्वेद में ईख के रस आदि का वर्णन

ईख को गुड-मूल भी कहा जाता है अर्थात सभी मिठाईयों के मूल में ईख ही है. अंग्रेजी में इसे सुगर केन कहा जाता है. ईख का रस सामान्य रूप से गुरु, स्निग्ध, पुष्टिकारक कफ तथा मूत्र को बढ़ने वाला होता है. यह वीर्यवर्धक, शीतल, रक्तपित्त नाशक, रस एवं पाक में मधुर और सर (मलभेदक)...

आयुर्वेद में दही, मट्ठा, मक्खन, घी आदि का वर्णन

दधी गुण वर्णन दही रस एवं पाक में अम्ल होता है, ग्राही अर्थात मल को बंधने वाला, उष्ण और वातनाशक होता है. अग्नि वर्धक एवं शोथकरक होता है. भोजन के प्रति रूचि को बढ़ता है. जाडा लगकर आने वाले विषम ज्वर में, पीनसरोग में और मूत्रकृच्छ रोग में दही का प्रयोग हितकर है. गृहणी रोग...

आयुर्वेद में द्रव-द्रव्यों का वर्णन – दुग्ध

सामान्य दूध के गुण सामान्य दूध रस अवेम पाक में मधुर होता है. सामान्य दूध स्निग्ध होता है और ओजस और रस आदि धातुओं को बढ़ने वाला होता है. ये वात और पित्त दोष का शमन करता है, वीर्य को बढ़ता है और कफ को भी बढ़ने वाला होता है. पचने में गुरु और शीतल होता है. गाय के दूध के गुण...