by Verma Ashish | Dec 19, 2019 | Uncategorized
विधि पूर्वक सेवन करने पर प्राय: सभी प्रकार के मद्य जठर अग्नि को बढ़ाते हैं. भोजन के प्रति रूचि को बढ़ाते है और तीक्ष्ण और उष्ण होते हैं. मात्रा अनुकूल सेवन करने पर मद्य तुष्टि (संतोष) और शारीरिक पुष्टि प्रदान करते हैं. सामान्य मद्य मधुर, कटु और तिक्त रस वाला होता है....
by Verma Ashish | Dec 17, 2019 | Uncategorized
तेल शब्द की उत्पत्ति तिल से हुई है इसलिए तेलों में तिल के तेल को मुख्य माना गया है. सभी तेल अपने अपने उत्पत्ति कारकों के समान गुणधर्मो वाले होते हैं. तिल का तेल तीक्ष्ण, व्यवाई अर्थात शीघ्र फैलने वाला, त्वग्दोषनाशक, नेत्रों के लिए हानिकारक, सूक्ष्म तथा उष्ण होता है....
by Verma Ashish | Dec 15, 2019 | Uncategorized
मधु अथवा शहद नेत्र रोगों के लिए उत्तम माना गया है. शहद लेखन है अर्थात साफ़-सफाई का कार्य करता है खुरच कर. इसलिए ये कफ को बाहर निकालने में मदद करता है. ये गले के लिए भी उत्तम माना गया है. जिन लोगों को अधिक बोलने की आवश्यकता होती है उनके लिए हितकर है. ये स्वर को मधुर...
by Verma Ashish | Nov 27, 2019 | Uncategorized
ईख को गुड-मूल भी कहा जाता है अर्थात सभी मिठाईयों के मूल में ईख ही है. अंग्रेजी में इसे सुगर केन कहा जाता है. ईख का रस सामान्य रूप से गुरु, स्निग्ध, पुष्टिकारक कफ तथा मूत्र को बढ़ने वाला होता है. यह वीर्यवर्धक, शीतल, रक्तपित्त नाशक, रस एवं पाक में मधुर और सर (मलभेदक)...
by Verma Ashish | Nov 17, 2019 | Uncategorized
दधी गुण वर्णन दही रस एवं पाक में अम्ल होता है, ग्राही अर्थात मल को बंधने वाला, उष्ण और वातनाशक होता है. अग्नि वर्धक एवं शोथकरक होता है. भोजन के प्रति रूचि को बढ़ता है. जाडा लगकर आने वाले विषम ज्वर में, पीनसरोग में और मूत्रकृच्छ रोग में दही का प्रयोग हितकर है. गृहणी रोग...