कहरवा एक प्रकार का गाेंद हाेता है, जाे साफ चमकदार और पीले रंग का हाेता है।
कहरवा काे हाथ पर रगड़ कर घास या तिनके के पास रखाने से ये उसे चुंबक की तरह पकड़ लेता है। कहरवा आम ताैर पर बर्मा की खानाें से तथा कुछ अन्य खाानाें से भी निकलता है। उत्तम कहरवा स्वच्छ, उज्ज्वल और साेने के समान पीले रंग का हाेता है। आग पर देर से पिघलता है।
कहरवा हाथ से रगड़ने पर गर्म हाे जाता है, नींबू जैसी खुशबू आती है और घास के तिनके काे, रूई काे और रेशम काे अपनी तरफ खींचता है। यह उत्तम कहरवा की पहचान है।
क्याेंकि कहरवा एक रालीय जाति का (गाेंद) पदार्थ है, भस्म बनाने पर इसके गुण कम हाे जाते हैं। इसलिए इसका प्रयाेग पिष्टी बना कर ही किया जाता है।
2-4 रत्ती दिन में 2-3 बार शहद या मक्खन के साथ प्रयाेग किया जाता है।
- यह स्तंभनकारक है और रक्त मिला हुआ थूक निकलना और रक्त स्राव काे राेकता है।
- ह्रदय काे शक्ति देता है।
- यह पैत्तिक उन्माद में लाभदायक है।
- संग्रहणी, पेचिश और प्रवाहिका काे दूर करता है क्याेंकि इसमें धारक शक्ति है।
- यह शीतल है, पित्त का शमन करता है और रक्तस्राव काे राेकता है।
- पित्त विकार, ह्रदय की दुर्बलता, रक्तातिसार, रक्तप्रदर, रक्तपित्त, वमन, प्रवाहिका और अर्श आदि राेगाें में इसका प्रयाेग लाभदायक है।
- चक्कर आना, ज्यादा प्यास लगना, पसीना आदि पित्तजन्य विकाराें में लाभदायक है।
- शरीर में कहीं से भी हाेने वाले रक्तस्राव काे राेकता है।
- मस्तिष्क में कीड़े पड़ जाने से हाेने वाले सरदर्द में लाभ करता है।
- घाव पर छिड़कने से खून बंद कर घाव काे सुखा देता है।
- कैसा भी घाव हाे, मवाद पड़ गया हाे, कीड़े पड़ गए हाें, बदबू आती हाे, कहरवा पिष्टी का चूर्ण छिड़कने से लाभ हाेता है।
- अग्नि से जल जाने पर इसकी पिष्टी काे मूर्दासंग, कबीला और गाय के घी के साथ लेप करने से लाभ हाेता है।
यह लेख केवल आपकी जानकारी के लिए है। अगर आपकाे काेई राेग विशेष है ताे अपे नजदीक किसी अच्छे आयुर्वेदिक डाॅक्टर की सलाह से ही किसी भी आयुर्वेदिक औषधि का प्रयाेग करें।