एक बार भगवान दक्ष प्रजापति स्थिर चित्त अवस्था में बैठे थे, तब दोनों अश्विनी कुमारों ने उनसे पूछा – भगवान हरीतकी कहां से उत्पन्न हुई, इसकी कितनी जातियां हैं, उनमें कौन से रस और उपरस है, कितने नाम हैं, उनके लक्षण और वर्ण कैसा है? हरीतकी की विभिन्न जातियों के गुण कौन से है, और किस जाति की हरड़ का प्रयोग किस कार्य के लिए किया जाता है? हरड़ किन द्रव्यों के संयोग से किन दोषों को दूर करती है?
अश्विनी कुमारों ने कहा कि हे भगवान, जैसा हमने आप से पूछा है, कृपया उचित उत्तर दीजिए।
अश्विनी कुमारों के प्रश्नों को सुनकर दक्ष प्रजापति ने कहा – एक बार भगवान इंद्र अमृत पान कर रहे थे, तब उनके मुख से एक बूंद अमृत धरती पर गिरी और इसी दिव्य अमृत की बूंद से सात जातियों वाली हरीतकी उत्पन्न हुई।
हरीतकी (हरड़) की सात जातियां हैं – विजया, रोहिणी, पूतना, अमृता, अभया, जीवन्ती, और चेतकी।
हरीतकी या हरड़ को अलग अलग नामों से जाना जाता है – हरीतकी, अभया, पथ्या, कायस्था, पूतना, अमृता, हैमवती, अव्यथा, चेतकी, श्रेयसी, शिवा, वयस्था, विजया, जीवन्ती और रोहिणी।
विजया विन्ध्य पर्वत पर, हिमालय पर चेतकी, रोहिणी हर स्थान पर, अमृता और अभया चम्पा देश, पूतना सिन्धु देश में तथा सुराष्ट्र देश में जीवन्ती पाई जाती है।
विजया हरीतकी लंब-गोल, रोहिणी गोल, पूतना का आकार छोटा और गुठली बड़ी, अमृता मांसल अथवा गूदेदार, अभया पांच रेखाओं वाली, जीवंती सोने के समान रंग वाली और चेतकी तीन रेखाओं वाली होती है।
हरड़ में लवण रस के अलावा अन्य पॉंचों रस – मधुर, अम्ल, कटु, कषाय और तिक्त रस हैं जिसमें कषाय रस ही प्रधानता से रहता है।
हरीतकी – रुक्ष, उष्ण वीर्य, अग्नि दीपक, मेधा के लिए हितकारी, मधुर विपाक वाली, रसायन, नेत्रों के लिए हितकर, लघु, आयु वर्धक, बृंहण, और अनुलोमन (मल आदि को नीचे की ओर प्रेरित करने वाली होती है।
हरीतकी अथवा हरड़ के सेवन से श्वास, कास, प्रमेह, बवासीर, कुष्ठ, शोथ, पेट के कृमि, स्वरभेद (आवाज में खराबी), ग्रहणी संबंधी रोग, विबंध, विषम ज्वर, गुल्म, उदराध्मान, तृषा, वमन, हिचकी, खुजली, हृदरोग, कामला, शूल आनाह, प्लीहा, यकृत, अश्मरी (पथरी), मूत्रकृच्छ तथा मूत्रघात – इन सभी रोगों में लाभ होता है।
हरड़ में मधुर, तिक्त और कषाय रस के कारण यह पित्त नाशक है। कटु, तिक्त तथा कषाय रस के कारण कफ नाशक है तथा अम्ल रस होने से वायु का भी शमन करती है। हरड़ तीनों दोषों को दूर करती है यह इसके प्रभाव से ही सिद्ध है।
नवीन, स्निग्ध, घन अथवा ठोस, गोल और गुरु हो और पानी में डालते ही डूब जाए – ऐसी हरड़ उत्तम होती है।
जो व्यक्ति रास्ता चलने से थका हो, बल हीन हो, रूखा हो, कृश हो, जिसने उपवास किया हो, जिसमें पित्त की प्रधानता हो, तथा जो स्त्री गर्भवती हो और जिन्हें रक्तमोक्षण कराया गया हो – इन सभी को हरड़ का सेवन नहीं करना चाहिए।