आयुर्वेद में द्रव द्रव्यों का व्याख्यान – जल

द्रव शब्द अनेक अर्थों का वाचक है जैसे – घोड़े की तरह दौड़ना, चूना, रिसना, गीला, टपकना इत्यादि. प्राचीन भारतीय विद्वानों के मतानुसार जल तत्व की उत्पत्ति अग्नि तत्व से हुई है. वे जल को आप कहते हैं – जिसका अर्थ है – सर्वत्र व्याप्त. जल तथा बर्फ से भी भाप...

तीनों दोषों और शारीरिक मलों का शोधन

वात, पित्त और कफ आदि दोषों का और पुरीष आदि शारीरिक मलों का अगर समय पर शोधन न किया जाय तो वे अधिक कुपित होकर शारीर का विनाश भी कर सकते हैं. उपचारों के द्वारा शांत किये गए दोष पुनः कुपित हो सकते हैं, पर जिन दोषों को वमन, विरेचन आदि संशोधन क्रियाओं के द्वारा शुद्ध किया...

रोगानुत्पादनिय अध्याय अष्टांगहृदयं

रोगानुत्पादनिय अष्टांगहृदयं का चौथा अध्याय है. इसका अर्थ है रोगों की उत्पत्ति की रोकथाम. वो प्रयास जिसके कारण रोगों से बचा जा सके. आयुर्वेद में स्वास्थ्य की रक्षा को सर्वप्रथम महत्वपूर्ण माना गया है. अगर आप आहार-विहार आदि दिनचर्या और ऋतुचर्या का ध्यान रखें तो रोगों से...

आयुर्वेद के अनुसार ऋतुचर्या

ऋतू का अर्थ होता है – मौसम और चर्या का अर्थ होता है – क्या करें और क्या न करें. अर्थात ऋतुओं के अनुसार हमे अपना जीवन कैसे जीना चाहिए – ऋतुचर्या है. अगर हम ऋतुचर्या का ध्यान रखें तो हमारा जीवन स्वास्थ्य होगा अन्यथा हमारा स्वास्थ्य ख़राब रहेगा और हम...
आयुर्वेद के अनुसार दिनचर्या

आयुर्वेद के अनुसार दिनचर्या

दिनचर्या शब्द का अर्थ है – आहार विहार तथा आचरण विधि. दिनचर्या में ही रात्रिचर्या और ऋतुचर्या भी समाहित हैं. आयुर्वेद सबसे पहले ये बताता है की स्वास्थ लोग अपने स्वास्थ्य की किस प्रकार रक्षा करें. इसमें वर्णित निर्देशों के पालन करने से आप का जीवन स्वास्थ और सुखमय...
रोग तथा आरोग्य के कारण

रोग तथा आरोग्य के कारण

काल अर्थात समय या मौसम, अर्थ – जिसे ज्ञानेन्द्रियों द्वारा ग्रहण किया जा सकता है और कर्म – मन, वाणी और शारीर की प्रवृति या चेष्टा – इन तीनो के हीन योग, अति योग और मिथ्या योग से ही रोगों की उत्पत्ति होती है. इन तीनो का सम्यक योग स्वास्थ रहने का कारण...