ये ले लो डाइबिटीज जड़ से खतम या एक कप रात को सोने से पहले पी लो सुबह पेट की चर्बी गायब!

इस तरह के भ्रामक और मिथ्या प्रचार बहुत जगह देखने को मिल जाते हैं। इस तरह के भ्रामक प्रचारों में आयुर्वेद के नाम का सहारा लिया जाता है। अंधविश्वास में लोग भी बातों में आ जाते हैं। उन्हें लगता है कि आयुर्वेदिक है तो सही ही होगा। बहुत कम लोगों ने आयुर्वेद को पढ़ा है। और वैसे भी वेदों को अकसर चमत्कार से जोड़ा जाता है, ज्ञान से नहीं।

ज्यादातर आयुर्वेदिक चिकित्सकों को भी लगता है कि आयुर्वेदिक चिकित्सा उतनी प्रभावी नहीं है। डिगरी आयुर्वेद में ले लेते हैं और प्रैक्टिस ऐलोपैथी की करते हैं। बहुत साल पहले मैं आयुर्वेदिक चिकित्सकों की एक गोष्ठी में गया था जहॉं आम धारणा थी कि आयुर्वेद में कोई प्रभावी एंटीबायोटिक और दर्द निवारक नहीं है। एक चिकित्सक से पूछा तो उन्होंने कहा कि आयुर्वेद के लिए पर्याप्त प्रमाण नहीं हैं इसलिए वो ऐलोपैथी में ज्यादा यकीन करते हैं।

यह विडंबना ही है कि अधिकतर लोग आयुर्वेदिक पद्धति के मिथ्या प्रचार में लगे हैं।

आयुर्वेद शुद्ध विज्ञान है। अष्टांग हृदयम् को पढ़ा तो जाना कि उसमें कहीं भी किसी भी चमत्कार की बात नहीं है।

जो व्यक्ति स्वस्थ हैं उनके स्वास्थ्य की रक्षा की बात करता है आयुर्वेद। स्वस्थ रहने के नियम हैं जो कि आज के प्रचलन से ही मेल खाते हैं। किस मौसम में क्या दिनचर्या हो, कितना व्यायाम करें, क्या खाएं और क्या नहीं। कितना खाएं।

रोगों के प्रकार और साध्य और असाध्य रोगों का विस्तार से विवरण है। आयुर्वेद यह मानता है कि सभी रोग साध्य नहीं होते। कुछ रोग हैं जिनमें रोगी का बचना संभव नहीं होता।

रोगों का इलाज रोगी की दशा, मौसम, प्रदेश आदि के हिसाब से होता है। रोग को लक्षणों के आधार पर जांचा और परखा जाता है। रोग को परखने के लिए रोगी को छू कर देखना, मल-मूत्र की जांच करना व और भी विकल्प हैं।

किस तरह के रोगी का इलाज आसान है और किस तरह के रोगी का इलाज कठिन है। चिकित्सक के गुण क्या होने चाहिये, आदि के विषय में विस्तार से कहा गया है।

भोजन और औषधि के गुणों के बारे में भी विस्तार से कहा गया है। यह भी कहा गया है कि संसार में जितने भी पदार्थ हैं उन सबका औषधि के रूप में प्रयोग किया जा सकता है। औषधि अनेक प्रकार की हो सकती हैं। उनका प्रयोग भी अनेक प्रकार से हो सकता है। गलत औषधि के प्रयोग से फायदे से अधिक नुकसान भी हो सकता है।

आयुर्वेद में रोग के लक्षणों से अधिक रोग के मूल कारणों के निदान पर बल दिया जाता है। उदाहरण के लिए अगर कोई व्यक्ति मोटा है तो उसे सबसे पहले अपने खान पान को सुधारना चाहिये।

हमारा प्रयास है कि आप तक सही जानकारी पहुँचाएं।

आयुर्वेदिक दवाओं के विषय में एक योग्य चिकित्सक का परामर्श अवश्य ले लें। आयुर्वेदिक दवाओं की जानकारी के लिए आयुर्वेदिक चिकित्सक का ही परामर्श लें, एलोपैथिक डॉक्टर का नहीं। उन्हें आयुर्वेद के विषय में सही जानकारी नहीं होती और कई बार वे सही सलाह नहीं दे पाते। आयुर्वेद के विषय किसी मिथ्या प्रचार पर भरोसा न करें।

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