अमृता या गिलोय को अन्य बहुत से नामों से जाना जाता है जैसे – मधुपर्णी, गुडुची या रसायनी। जैसा इसका नाम है वैसे ही गुण हैं अमृता के – यह अमृत के समान ही शरीर को लाभ पहुँचाती है।

अमृता या गिलोय लघु, स्निग्ध, कटु रस वाली और उष्ण वीर्य औषधि है।

आयुर्वेद में तीन दोष कहे गये हैं – वात (वायु), पित्त (गरमी) और कफ (भारीपन)। यह तीनों सम मात्रा में शरीर के लिए हितकर हैं और विषम मात्रा में बीमारियां उत्पन्न करते हैं। गिलोय इन तीनों दोषों से होने वाली बीमारियों में लाभ करती है।

गिलोय बुढ़ापे को रोकती है यह एंटी ऑक्सीडेंट गुणों से भरपूर है।

अगर आपको प्यास अधिक लगती हो जैसे मधुमेह या डाइबिटीज में लगती है तो गिलोय लाभ करती है।

अगर आपको उलटी की समस्या है तो भी गिलोय लाभदायक है। कड़वी होने से अमृता दीपन-पाचन में लाभप्रद है।

किसी भी प्रकार के कृमि में भी गिलोय फायदा करती है। फंगल और वायरल इन्फैक्शन में भी गिलोय लाभ करती है।

पेट से संबंधित रोगों में जैसे अपच या खट्टी डकार, गैस आदि में भी गिलोय बहुत फायदा करती है।

खून से संबंधित विकारों में गिलोय फायदेमंद है। जॉनडिस में गिलोय का काढ़ा फायदा करता है।

त्वचा रोगों में भी गिलोय फायदेमंद है।

वात रक्त की बीमारियों में जैसे गाउट में गिलोय फायदेमंद है। कफ संबंधित रोग जैसे – फैटी लिवर में गिलोय को लिया जा सकता है। शुगर या डाइबिटीज में गिलोय का प्रयोग किया जाता है।

गिलोय वृष्य है – शुक्र धातु को बढ़ाता है। हर तरह के बुखार में भी गिलोय लाभ करता है। जिसे कोई रोग नहीं है, वह भी गिलोय का सेवन कर सकता है क्योंकि आयुर्वेद में इसे रसायन कहा गया है।

वात रोगी गिलोय को घी के साथ प्रयोग करें, पित्त रोगी मिश्री के साथ और कफ रोगी शहद के साथ। पाउडर 3-5 ग्राम, क्वाथ या काढ़ा 60-100 मिली लीटर या टेबलेट या कैपसूल के रूप में भी इसे प्रयोग कर सकते हैं। गिलोय को कोई भी प्रयोग कर सकता है।

यह लेख आपकी जानकारी के लिए है। एक अच्छे आयुर्वेदिक चिकित्सक कि सलाह अवश्य लें।

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