मधु अथवा शहद नेत्र रोगों के लिए उत्तम माना गया है.
शहद लेखन है अर्थात साफ़-सफाई का कार्य करता है खुरच कर. इसलिए ये कफ को बाहर निकालने में मदद करता है. ये गले के लिए भी उत्तम माना गया है. जिन लोगों को अधिक बोलने की आवश्यकता होती है उनके लिए हितकर है. ये स्वर को मधुर बनाने में भी मदद करता है.
शहद योगवाही है अर्थात औषधियों को शारीर में पहुँचाने का कार्य करता है. जैसी औषधि इसमें मिली हो वैसा ही इसका गुण हो जाता है. इसलिए आयुर्वेद में बहुत सी औषधियों को शहद के साथ दिया जाता है.
शहद प्यास, कफविकार, विष विकार, हिक्का या हिचकी, रक्त पित्त, प्रमेह, कुष्ठ, कृमी, छरदी, श्वास, कास और अतिसार रोग को नष्ट करता है.
शहद व्रणशोधन, व्रणसंधान और व्रणरोपण करता है.
शहद वातरोग कारक है, रुक्ष, कषाय एवम मधुर गुण वाला है.
इसी के समान गुणों वाली मधुशर्करा भी होती है.
आयुर्वेद में उष्ण मधु के सेवन का निषेद है. इसे किसी भी गर्मी से पीड़ित व्यक्ति को गर्मी के दिनों में गर्म जल आदि के साथ सेवन नहीं करना चाहिए क्यूंकि ये हानि पहुंचा सकता है.
शंशोधन के लिए उष्ण मधु का प्रयोग किया जा सकता है क्यूंकि ये बिना पचे ही शारीर से बाहर आ जाता है.