हैलाे, एवरीवन, कैसे हैं आप सब?

आज हम बात करेंगे आयुर्वेद की एक और क्लासिकल औषधि के बारे में – कपर्दक भस्म।

कपर्दक भस्म काे वराटिका भस्म भी कहते हैं। कपर्दक काे आम बाेलचाल की भाषा में काैड़ी कहते हैं। पहले काैड़ी का प्रयाेग लेनदेन के लिए पैसाें के रूप में भी किया जाता था।

अंग्रेजी में कपर्दक काे Cowry Shell कहते हैं।

कपर्दक या काैड़ी तीन प्रकार की हाेती है – सफेद, लाल और पीली। भस्म बनाने के लिए पीले रंग की काैड़ी का प्रयाेग किया जाता है। कपर्दक भस्म सफेद रंग का महीन चूर्ण हाेता है।

कपर्दक भस्म तासीर में ऊष्ण, कफ और पित्त शामक, दीपन, पाचन और ग्राही गुण वाली हाेती है। ये आम पाचक और पेट दर्द का नाश करती है।

कपर्दक भस्म का प्रयाेग मुख्य रूप से पेट से संबंधित विकाराें में किया जाता है जैसे – एसिडिटी, हाइपर एसिडिटी, सीने में जलन, खट्टी डकार, पेट का भारीपन, अपच, ग्रहणी राेग या आई बी एस, भूख की कमी आदि।

कर्ण स्राव या कानाें के बहने में भी कपर्दक भस्म का प्रयाेग किया जाता है।

कपर्दक भस्म का प्रयाेग घी, मलाई या शहद में मिला कर करना चाहिए। 250-500 मिली ग्राम की मात्रा में दिन में दाे बार। इसका प्रयाेग सूखा नहीं करना चाहिए, क्याेंकि ये तीक्ष्ण औषधि है और इससे जीभ कट सकती है।

कपर्दक भस्म काे राेग के अनुसार उचित अनुपान के साथ प्रयाेग करना चाहिए।

ये लेख केवल आपकी जानकारी के लिए है। किसी भी आयुर्वेदिक औषधि का प्रयाेग बिना किसी अच्छे वैद्य या डाॅक्टर की सलाह के नहीं करना चाहिए।

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