आयुर्वेद को समझना अपने आप को समझना है, प्रकृति को समझना है, अपने और अपने आस पास के द्रव्यों के गुणों को समझना है। इस समझ के आधार पर जीवन जीना सरल हो जाता है। अपने और अन्य सभी द्रव्यों के गुणों के आधार पर हम ये निर्णय ले सकते हैं कि कौन सा द्रव्य हमारे किस काम आ सकता है।
आज हम हरीतकी या कि हरड़ के विषय में जानेंगे।
एक समय प्रजापति दक्ष जब स्थिर चित्त बैठे थे तो देवताओं के वैद्य अश्विनी कुमारों ने उनसे कहा – हे भगवन हमें हरीतकी के विषय में विस्तार से बताएं। हरीतकी की उत्पत्ति कैसे हुई, इसकी कितनी प्रजातियां हैं, क्या गुण धर्म हैं और हरीतकी का प्रयोग किस प्रकार किया जा सकता है और किस प्रकार के रोगों में हरीतकी लाभ करती है। तब दक्ष प्रजापति ने अश्विनी कुमारों से कहा कि एक बार देवराज इंद्र जब अमृत पान कर रहे थे, तब उनके मुख से एक बूंद अमृत की पृथ्वी पर पड़ी और इसी से सात जातियों वाली हरीतकी उत्पन्न हुई।
यहां कहने का तातपर्य ये है कि हरीतकी अमृत के समान गुण वाली है।
हरीतकी के अलग-अलग नाम हैं – हरीतकी, अभया, पथ्या, कायस्था, पूतना, हैमवती, अव्यथा, चेतकी, श्रेयसी, शिवा, वयस्था, जीवन्ती तथा रोहिणी।
हरीतकी के सात भेद हैं – विजया, रोहिणी, पूतना, अमृता, अभया, जीवन्ती और चेतकी।
हरीतकी में लवण रस के अतिरिक्त अन्य पांचों रस पाए जाते हैं – मधुर, अम्ल, कटु, कषाय और तिक्त। और रसों की अपेक्षा हरीतकी में कषाय रस ही प्रधान होता है। हरीतकी रुक्ष, उष्णवीर्य, अग्निदीपक, मेधा शक्ति को बढ़ाने वाली, विपाक में मधुर, वृद्धावस्था और बीमारियों को दूर करने वाली, नेत्रों के लिए हितकारी, पचने में लघु, आयु को बढ़ाने वाली, बृंहण, और वायु का अनुलोमन करने वाली होती है। हरीतकी पित्त नाशक, कफ नाशक और वायु का भी शमन करती है। ये इसके प्रभाव से सिद्ध है।
हरीतकी के सेवन से श्वास, कास, प्रमेह, बवासीर, कुष्ठ, शोथ, पेट के कृमि, स्वरभेद, ग्रहणी संबंधी रोग, विबंध, विषम ज्वर, गुल्म, तृषा, वमन, खुजली, हिचकी, कामला आदि में लाभ होता है।
अन्य बहुत से औषधि योग में हरीतकी या हरड़ का प्रयोग होता है।
ये लेख केवल आपकी जानकारी के लिए है। यदि आपको कोई बीमारी है और आप आयुर्वेद से इलाज कराना चाहते हैं तो कृपया किसी अच्छे आयुर्वेदिक डॉक्टर से सलाह कर के ही औषधि का प्रयोग करें।