हम कुछ भी खाते है तो खाने की मैटाबालिज्म के बाद शुगर ग्लूकोज के फॉर्म में बनती ही है। ये आवश्यक भी है। शुगर हमारे शरीर को दैनिक कार्यों के लिए ऊर्जा देती है। इसके बिना चल पाना भी मुश्किल हो जाएगा। लेकिन अगर यही शुगर जरूरत से ज्यादा हो जाए तो भी शरीर के लिए मुश्किल पैदा कर देती है। लंबे समय तक अगर शुगर की मात्रा बढ़ी रहे तो आंखों पर और दूसरे ऑर्गन्स पर भी इसका दुषप्रभाव पड़ सकता है। बढ़ी शुगर के तीन प्रमुख लक्षण हैं – ज्यादा प्यास लगना, बहु मूत्र और तेज भूख लगना।

अच्छे स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है कि शुगर की मात्रा बैलेंस में रहे। ज्यादा या कम दोनों ही परिस्थितियों में ये हानिकारक है।

शुगर को कंट्रोल में रखने के लिए अपनी जीवन शैली और भोजन दोनों का ही ध्यान रखना आवश्यक है।

नियमित व्यायाम करें

शुगर ऐनर्जी का ही रूप है। नियमित व्यायाम से शुगर को कंट्रोल करने में मदद मिलती है।

भोजन में कार्बोहाइड्रेट्स पर ध्यान दें

कार्बोहाइड्रेट्स दो प्रकार के होते हैं। सिंपल और कॉम्प्लैक्स। सिंपल कार्बस से शुगर ज्यादा तेजी से बढ़ती है, इनका ग्लाइसिमिक इंडैक्स ज्यादा होता है। उदाहरण के लिए मैदा। चीनी। इनकी अपेक्षा कॉम्प्लैक्स कार्ब्स से शुगर तेजी से नहीं बढती और इनका ग्लाइसिमिक इंडैक्स भी लो होता है। उदाहरण के लिए होल ग्रेन्स, छिलके वाली दालें और सब्जियां।

भोजन में फाइबर की आवश्यकता

भोजन में फाइबर की अधिकता से शुगर और कॉलेस्टीरोल को कंट्रोल करने में मदद मिलती है। फाइबर कब्ज जैसी समस्याओं से भी उबरने में मदद करता है। हरी पत्तेदार सब्जियां, होल ग्रेन्स, छिलके वाली दालें फाइबर के कुछ प्रमुख स्रोत हैं। कच्ची सलाद का भी भरपूर सेवन करना चाहिए।

प्रोटीन है जरूरी

प्रोटीन की संतुलित मात्रा से हमारे मसल्स या मांस पेशियों को बल मिलता है, इससे हमारी मैटाबॉलिज्म ठीक रहती है। प्रोटीन की उपयोगिता मसल मास के अलावा भी बहुत अधिक है। ये हमारी बॉडी का बिल्डिंग ब्लॉक है। भोजन में 30-35 प्रतिशत प्रोटीन होना चाहिए। प्रोटीन से शुगर स्पाइक नहीं होता। ये वजन कम करने और मैनटेन रखने में भी सहायक है। प्रोटीन हमें मांस, मछली, अंडे, दूध, दही, पनीर, दालों आदि से प्राप्त होता है।

गुड फैट्स क्यों जरूरी हैं?

हमारे भोजन का 10-15 प्रतिशत हिस्सा फैट से आना चाहिए। फैट भी एक मैक्रोन्यूट्रिएंट है और शरीर के लिए आवश्यक है। फैट से भी शुगर नहीं बढ़ती।

माइक्रो न्यूट्रिएंट्स – क्रोमियम और मैग्नेशियम

ये हमारे पैंक्रिया की हैल्थ के लिए आवश्यक हैं और इंसूलिन प्रोडक्शन में मदद करते हैं।

पानी कितना पीएँ

पानी अपनी प्यास के अनुसार पीना चाहिए। पानी की कमी और अधिकता दोनों ही नुकसान करती हैं। अधिक पानी पीने से आयुर्वेद के अनुसार अग्नि मंद हो जाती है। इससे भोजन के पचने में मुश्किल होती है। शरीर को भोजन से पूरे पोषक तत्व नहीं मिल पाते।

पानी की कमी से डीहाइड्रेशन हो सकता है। कब्ज भी हो सकती है।

भोजन की मात्रा का ध्यान रक्खें

भोजन संतुलित होना चाहिए, ताकि शरीर में पोषक तत्वों की कमी न हो। एक बार में अधिक भोजन न करें। एक बार में अधिक भोजन करने से शुगर को कंट्रोल करने में मुश्किल होती है।

ग्लाइसेमिक इंडेक्स क्या है?

ग्लाइसेमिक इंडेक्स से भोजन से प्राप्त होने वाली शुगर को मापा जाता है। जिस भोज्य पदार्थ का ग्लाइसेमिक इंडेक्स जितना ज्यादा होगा उससे शुगर उतनी तेजी से हमारे शरीर में रिलीज होगी। इसलिए कम ग्लाइसेमिक इंडेक्स वाले भोजन का अधिक इस्तेमाल करना चाहिए।

तनाव मुक्त रहें

जितना हो सके तनाव मुक्त रहें। तनाव की अधिकता से भी शुगर बढ़ती है।

उचित विश्राम और पूरी नींद का ध्यान रक्खें

उचित व्यायाम के साथ विश्राम और नींद का भी ध्यान रखना जरूरी है। इससे शरीर को अपनी देखभाल के लिए समय मिल जाता है।

आपका वजन कितना है?

अपने वजन को नियंत्रण में रक्खें। ज्यादा वजन का होना भी शरीर में अनेक व्याधियों की उत्पत्ति करता है।

आयुर्वेद से उपचार

आयुर्वेद में बहुत सी औषधियां हैं जिनके माध्यम से आप अपनी शुगर को नियंत्रित कर सकते हैं।

अपने डॉक्टर की सलाह लें

ये लेख केवल आपकी जानकारी के लिए है। किसी भी दवाई का उपयोग अपने डॉक्टर की सलाह के अनुसार ही करें। आप जिस भी पद्धति से अपना इलाज करना चाहते हैं – आयुर्वेद, होमियोपैथी या ऐलोपैथी, उचित डॉक्टर की सलाह लें।

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