बहेड़ा का वृक्ष विशाल होता है – 15 से लेकर ये 30 मीटर तक लंबा होता है। बहेड़ा का वृक्ष प्राय: पूरे देश में पाया जाता है, विशेषकर नीची पहाड़ियों पर और जंगल में अधिक होता है। इसकी छाल मोटी होती है और पत्ते महुवे के पत्तों के समान होते हैं। बहेड़ा का फल 2.5 से. मी. लंबा, गोलाभ और अण्डाकार होता है।

पतझड़ में इसके पत्ते झड़ जाते हैं और चैत तक नए पत्ते आते हैं तथा उसी समय इसपर फूल भी आते हैं। शीतकाल के प्रारम्भ में इसपर फल लग जाते हैं। पेड़ से बबूल की तरह एक तरह का गोंद निकलता है और बीज मज्जा से तेल भी निकाला जाता है।

बहेड़ा को अधिकतर त्रिफला के रूप में ही प्रयोग किया जाता है। आधा पका बहेड़ा विरेचक और पूरा पका या सूखा फल संकोचक माना जाता है।

बहेड़ा का विपाक मधुर, रस – कषाय, और यह कफ और पित्त का नाशक है। यह ऊष्ण वीर्य, शीत स्पर्श वाला और मल का अनुलोमन करने वाला होता है। कास का नाशक, रूक्ष, नेत्रों तथा बालों के लिए हितकर, कृमि तथा स्वर भेद को दूर करता है। बहेड़ा की मींगी – प्यास, वमन, कफ और वायू का नाश करती है, स्वाद में कसैली और मद पैदा करने वाली होती है।

बहेड़ा का प्रयोग खॉंसी, गले के रोग, स्वरभंग, ज्वर, उदर, प्लीहावृद्धि, अर्श, अतिसार, कुष्ठ आदि रोगों में होता है। इसका लेप नेत्रों के लिए अच्छा होता है। इसकी मज्जा वेदनास्थापक, शोथघ्न और दाह नाशक होती है। मज्जा या छिलके को भूनकर चूंसने से खॉंसी में लाभ होता है।

बहेड़ा का चूर्ण 3-6 ग्राम प्रयोग किया जाता है।

Discover more from Facile Wellness

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading