ईख को गुड-मूल भी कहा जाता है अर्थात सभी मिठाईयों के मूल में ईख ही है. अंग्रेजी में इसे सुगर केन कहा जाता है.
ईख का रस सामान्य रूप से गुरु, स्निग्ध, पुष्टिकारक कफ तथा मूत्र को बढ़ने वाला होता है. यह वीर्यवर्धक, शीतल, रक्तपित्त नाशक, रस एवं पाक में मधुर और सर (मलभेदक) होता है. ईख के शुरू के एक-दो पोरों का रस कुछ नमकीन होता है और मध्यभाग का रस मधुर होता है. यंत्र विशेष में दबाकर निकाला हुआ रस कुछ समय रखने के पश्यात विकृत हो जाता है.
ईख की अनेक जातियां होती हैं और इन सब में पौन्ड्रक नामक ईख को श्रेष्ट माना जाता है. वर्तमान में वैज्ञानिकों द्वारा बहुत सी नई प्रजातियाँ विकसित की गई हैं जिनकी उपज तो ज्यादा है पर गुणों में कुछ निम्न हैं, ऐसा विद्वानों का मत है.
ईख के रस से निर्मित पदार्थ हैं –
- फाणित (राब)
- मत्स्यंडी (मछली के अण्डों के सामान)
- गुड
- खंड
- शर्करा
- पुश्पसिता या सितोपला
फाणित गुरु, अभिष्यंदी, दोषों का संचय करने वाला किन्तु मूत्र का शोधन करने वाला होता है. ईख के रस को स्वच्छ करके बनाया गया गुड प्रथम श्रेणी का होता है. ये अधिक कफकारक नहीं होता. यह मूत्र और पुरीष का प्रवर्तक होता है. ईख के रस को साफ़ किये बिना ही जो गुड बनता है वह दूसरी श्रेणी का होता है. इसके सेवन से पेट में कृमियों की उत्पत्ति होती है और यह मांस, मेदस, मज्जा तथा कफदोश को बढ़ता है.
पुराना गुड ह्रदय के लिए हितकारी और पचने में आसान होता है, नया गुड कफदोश को बढ़ने वाला होता है और जठर अग्नि को मंद कर देता है.
राब, खंड तथा सिता या सितोपला (मिश्री) उत्तरोतर गुणवान होते है.
यासशर्करा या यवासशर्करा जवासे की खंड या चीनी होती है. यह भी ईख की चीनी के सामान गुणों वाली होती है. यह कुछ तिक्त, मधुर और कषय रस वाली होती है.
ईख के अतिरिक्त अन्य पदार्थों से भी शर्करा का निर्माण किया जाता है जैसे – ताड़, खजूर, दाख, तथा अन्य फलों से बनाई गई शर्करा तथा मधुशर्करा.
ईख के रस से बनने वाले सभी पदार्थों में शर्करा तथा मिश्री उत्तम और फाणित या राब अधम होती है.